Monday, May 16, 2011

6 dhala-doosri dhaal-nirjara,moksh tatva ka vipreet shraddhan aur agrahit mithyagyan ka swaroop

६ ढाला

दूसरी ढाल

निर्जरा,मोक्ष तत्व का विपरीत श्रद्धान और अग्रहित मिथ्याज्ञान का स्वरुप

रोके न चाह निज शक्ति खोय,शिवरूप निराकुलता न जोय,
याही प्रतीतिजुत कछुक ज्ञान,सो दुःख दायक अज्ञान जान.


शब्दार्थ
१.चाह-
पाचों इन्द्रिय के विषय
२.शिव रूप-मोक्ष रूप,मोक्ष,सिद्ध स्वरुप
३.निराकुलता-दुःख से रहित
४.जोय-होता है
५.याही-यह
६.प्रतीति-विश्वास
७.जुट-अग्रहित मिथ्यादर्शन
८.कछुक-थोडा सा

भावार्थ
कवि कहते हैं कि जो हम पंचेंद्रियों के विषयों में लीं रहते हैं,अपनी चाह को नहीं रोकते हैं,नियम अदि नहीं लेते हैं,कर्मों के बांध को ही शुभ मानते हैं,और कर्मों कि निर्जरा नहीं चाहते हैं,और अपनी अनंत शक्ति को भूल कर शारीर में लीं हो जाते हैं यहि निर्जरा तत्व का विपरीत श्रद्धान है,मोक्ष तत्व का विपरीत श्रद्धान यह है कि मोक्ष में आकुलता होता है,ऐसा श्रद्धान करना मोक्ष तत्व का विपरीत श्रद्धान है,इसका सच्चा श्रद्धान यह है कि  ..संसार में हर जगह दुःख है,चाहे स्वर्ग हो,चाहे नरक हो हर जगह दुःख ही दुःख है,आकुलता है,लकिन मोक्ष में कोई आकुलता नहीं है,लेकिन अज्ञानी जीव मोक्ष में आकुलता को मानता है,वेह सोचता है कि भला इन्द्रियों के बिन सुख कहाँ से आएगा?,पंचेंद्रियों के विषयों के बिना सुख कहाँ से होगा,बीबी बच्चों के बिना सुख कैसे होगा,जैसे कि अन्य धर्मों में स्वर्ग में ही मोक्ष बता दिया है..और उनके धर्म में उनके भगवन के बच्चे होते हैं,शादी शुदा होते हैं?क्योंकि वेह सोचते हैं कि बीबी बच्चों के बिन सुख कहाँ से होगा..इस तरह के प्रश्न करना मोक्ष तत्व का विपरीत श्रद्धान है...लेकिन ज्ञानी लोग बहुत अच्छे से जानते हैं कि आत्मा का स्वाभाव अनंत-दर्शन ज्ञान है...हर जीव सुख चाहता है..और वेह असली सुख बिन आकुलता का ही है..इन्द्रियों में तोह दुःख ही दुःख है,क्योंकि इन्द्रियों में तोह आकुलता हो होती है.....अतः मोक्ष में आकुलता मानना मोक्ष तत्व का विपरीत श्रद्धान है,उल्टा श्रद्धान है...यह सातों तत्वों का विपरीत श्रद्धान का वर्णन पूरा हुआ ...अब इन सातों तत्वों के विपरीत श्रद्धान के साथ जितना भी ज्ञान है,यह अग्रहित मिथ्याज्ञान है....और यह अग्रहित मिथ्याज्ञान अति-दुःख दायक है.

रचयिता--श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस.

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.


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