Tuesday, May 17, 2011

६ ढाला


दूसरी ढाल


अग्रहित मिथ्यचरित्र का स्वरुप

इन जुत विषयन में जो प्रवर्त,ताको जानो मिथ्याचरित्र
यों मिथ्यात्व अदि निसर्ग जेह,अब जे गृहीत सुनिए सु तेह.


शब्दार्थ

१.इन-यह
२.जुत-अग्रहित मिथ्यादर्शन और अग्रहित मिथ्याज्ञान
३.विषयन-पांचो इन्द्रियों के पोषण में
४.प्रवर्त-प्रवर्ती करता है,श्रद्धां करता है
५.ताको-इस को
६.मिथ्याचरित्र-झूठा चरित्र
७.यो-यह
८.निसर्ग-अग्रहित
९.गृहीत-ग्रहन किया हुआ
१०.सु-भली तरह से जान कर
११.तेह-इनको


भावार्थ
कविवर दौलत राम जी कहते हैं की अग्रहित मिथ्याज्ञान और मिथ्यादर्शन के साथ पांचो-इन्द्रियों के विषय में,भोग विलास में लीं रहना मिथ्याचरित्र है,यानी की जो सातों तत्वों के विपरीत श्रद्धान और अग्रहित मिथ्या ज्ञान के साथ जैसा भी चरित्र होता है..वेह मिथ्याचरित्र होता है..यह मिथ्यादर्शन,मिथ्याज्ञान और मिथ्याचरित्र(मिथ्यात्व) अदि अग्रहित(निसर्ग)  के रूप में कहे गए हैं,इनका वर्णन पूरा हुआ है...अब गृहीत मिथ्यात्व का वर्णन करते हैं...इन्हें भली प्रकार से सुने,पढ़ें और जानें..(यह हम अगले श्लोकों में पढेंगे)


रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-श्रीमती पुष्पा बैनाडा जी

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.


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