Wednesday, May 11, 2011

6 DHALA-DUSRI DHAAL-SANSAAR PARIBHRAMAN KA KAARAN

६ ढाला


दूसरी ढाल

संसार भ्रमण का कारण

ऐसे मिथ्यादृग ज्ञान चर्ण ,बस भ्रमत भरत दुःख जन्म मर्ण
ताते इनको ताजिये सुजान,सुन तिन संक्षेप कहूँ बखान


शब्दार्थ

१.मिथ्यादृग -मिथ्या दर्शन
२.चर्ण-चरित्र
३.बस-वशीभूत हो-कर
४.मर्ण -मरण के
५.भरत-भोग रहा है
६.ताते-इसलिए
७.सुजान-बहुत अच्छी तरह से जान कर
८.ताजिये-त्याग कीजिये.
९.तिन-इन तीनों का (मिथ्या दर्शन-ज्ञान-चरित्र का)
१०.संक्षेप-कम शब्दों में

भावार्थ
हमने पिछली ढाल में जाना के यह जीव जन्म मरण के दुखो को भोगता रहता है,और अनादी काल से भोगता आया है,इसका एक कारण तोह हमने पहली ढाल में ही जाना की इस जीव ने मोह रुपी महा मदिरा पी राखी है,जिसके कारण वेह संसार में भटक रहा है,यानी कि हम भी संसार में इसी के कारण भटक रहे हैं,अब कविवर ने इसका दूसरा कारण यह भी बताया है कि हमने मिथ्या दर्शन-ज्ञान-चरित्र को अपने लिया है,यह जीव अनंत काल से मिथ्या दर्शन-ज्ञान-चरित्र का पोषण कर रहा है,और इन मिथ्या ज्ञान चरित्र के वश में आकर संसार में भ्रमण कर रहा है और जन्म मरण के दुखों को सेहन कर रहा है,भोग रहा है,इसलिए कवि कह रहे हैं कि इनको ताजिये,इसीलिए इनका त्याग कीजिये....कवि कह रहे हैं...अब मैं इन तीनो (मिथ्या दर्शन-ज्ञान-चरित्र) का संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ...

यह हम अगले दोहे में पढेंगे

रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-श्रीमती पुष्पा बैनाडा जी.

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ धोक.




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