६ ढाला
पहली ढाल
नरक गति के भीषण दुःख
१.नरक की भूमि और नदी के दुःख
तहां भूमि परसत दुःख इसो,बिच्छु सहस डसे नहीं तिसो
तहां राध-श्रोणित वाहिनी,कृम्कुल्कलित देह-दाहिनी.
२.नरक के सेमर वृक्ष और सर्दी गर्मी के दुःख
सेमर तरु दल-जुट असिपत्र,असि ज्यों देह विदारे तत्र,
मेरु समान लोह-गल जाय,ऐसे शीत-उष्णता थाय.
३.नरक में असुर कुमार देवों द्वारा दिए हुए दुःख और प्यास का दुःख
तिल-तिल करे देह के खंड,असुर भिडावें दुष्ट प्रचंड,
सिन्धु नीर से प्यास न जाए,तोह पण एक न बूंद लहे
४.नरक में भूख और मनुष्य गति का कारण
तीन लोक का नाज जु खाय,मिटे न भूख,कणा न लहाय,
यह दुःख बहु-सागरलौ सहें,करम-जोगते नर गति लहें.
(इसमें हिंदी के बहुत अक्षर सही प्रिंट नहीं हो पाएं हैं,जैसे की क्रम्कुल्कुलित शब्द हैं,जो टाइप नहीं हो पा रहे है,अशुद्धि के लिए माफ़ी,क्षमा)
शब्दार्थ
१.तहां-उस नरक की
२.परसत-स्पर्श
३.इसो-होता है
४.सहस-१०००
५.राध-श्रोणित--पीप और खून की
६.वाहिनी-नदी
७.कृम्कुल्कलित-क्षुद्र कीड़ों से भरी हुई
८.दाहिनी-जलाने वाली
९.दल-जुत-पत्ते
१०-असि पत्र-तलवार की धार के सामान पत्ते
११.असि-तलवार
१२.विदारे-तोडना
१३.तत्र-उसी समय
१४.शीत-ठण्ड
१५.उष्णता-गर्मी
१६.थाय-होती है
१७.तिल-तिल-छोटे-छोटे
१८.खंड-टुकड़े
१९.असुर-असुर कुमार देव
२०.भिडावे-लड़ते हैं
२१.प्रचंड-भयानक दुःख
२२.सिन्धु नीर-सागर के पानी
२३.पण-पानी
२४.लहाय-नहीं मिलती हैं
२५.जू-जो
२६.कणा-एक अंश
२७.सागर लौ-बहुत सागर की आयु तक
२८.कर्म जोगते-शुभ कर्म के उदय से
भावार्थ
यह जीव निगोदिया,एकेंद्रीय,त्रस,सैनी और असैनि पंचेंद्रिया योनियों में भटक कर अति संक्लेश भाव रखने के कारण नरक में सर के बल गिरता है,नरक की भूमि (तहां भूमि) को छूने मात्र का इतना कष्ट होता है (परसत दुःख इसो) की एक बार में १००० बिच्छु एक साथ भी काट जायें न तोह,इतना दुःख नहीं होगा,जब यह जीव थोड़ी सी शांति पाने के लिए नदी में जाता है,जो खून और पीप से भरी हुई होती है,तोह उस नदी में मौजूद क्षुद्र-कीड़े उससे खा जाते हैं,और उसकी देह में और ज्यादा पीड़ा उत्पन्न होती है,जब यह जीव इस से परेशांन होकर सेमर के वृक्षों के नीचे शांति की आस में जा कर बैठता है,तोह तलवार की धार के सामान पत्ते,तलवार की तरह नारकी के शारीर को उसी समय काट देते हैं,नरकों में गर्मी इतनी होती है की सुमेरु पर्वत के समान लोहे का गोला भी पिघल जायेगा,और सर्दी इतनी होती है की सुमेरु पर्वत के सामान लोहे का गोला गल जाएगा,गलन आ जाएगी,गल जाएगा,शुरू के ४ नरकों में भीसन गर्मी और नीचे के तीन नरकों में भीसन सर्दी होती है.यह हमारी अपनी ही कहानी है,हमने भी इतने दुःख सेहन किये और आज कूलर,के बिना रह नहीं पाते हैं,नारकियों का दुःख उस समय और बढ़ जाता है,जब असुर कुमार देव उन्हें भिड़ते रहते हैं,लड़ाते रहते हैं,जिसके कारण यह नारकी जीव उनकी बातों में आ कर एक दुसरे की देह के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं,नरकों में पूरी आयु भोगनी पड़ती है,असुर कुमार देव तीसे नरक से नीचे नहीं जा सकते हैं.प्यास का दुःख तोह इतना है,कि अगर सागर जितना पानी भी उपलब्ध हो जाए तोह भी प्यास नहीं बुझेगी,लेकिन वहां पानी के एक बूंद नहीं है,नरकों में भूख इतनी लगती है,कि तीनों लोकों का नाज अगर उस नारकी (हम) को खाने के लिए दे-दिया जाए तोह भूख नहीं मिटेगी,लेकिन वहां एक कण भी उपलब्ध नहीं है,इस प्रकार यह जीव नरकों के दुःख को बहुत सागर कि आयु तक सेहन करता है,और किसी शुभ कर्म के उदय से मनुष्य गति कि और प्रस्थान करता है,नरक में रहते-रहते जीव के परिणाम सुधर जाते हैं,इसलिए मनुष्य गति मिलती है.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस
१७.तिल-तिल-छोटे-छोटे
१८.खंड-टुकड़े
१९.असुर-असुर कुमार देव
२०.भिडावे-लड़ते हैं
२१.प्रचंड-भयानक दुःख
२२.सिन्धु नीर-सागर के पानी
२३.पण-पानी
२४.लहाय-नहीं मिलती हैं
२५.जू-जो
२६.कणा-एक अंश
२७.सागर लौ-बहुत सागर की आयु तक
२८.कर्म जोगते-शुभ कर्म के उदय से
भावार्थ
यह जीव निगोदिया,एकेंद्रीय,त्रस,सैनी और असैनि पंचेंद्रिया योनियों में भटक कर अति संक्लेश भाव रखने के कारण नरक में सर के बल गिरता है,नरक की भूमि (तहां भूमि) को छूने मात्र का इतना कष्ट होता है (परसत दुःख इसो) की एक बार में १००० बिच्छु एक साथ भी काट जायें न तोह,इतना दुःख नहीं होगा,जब यह जीव थोड़ी सी शांति पाने के लिए नदी में जाता है,जो खून और पीप से भरी हुई होती है,तोह उस नदी में मौजूद क्षुद्र-कीड़े उससे खा जाते हैं,और उसकी देह में और ज्यादा पीड़ा उत्पन्न होती है,जब यह जीव इस से परेशांन होकर सेमर के वृक्षों के नीचे शांति की आस में जा कर बैठता है,तोह तलवार की धार के सामान पत्ते,तलवार की तरह नारकी के शारीर को उसी समय काट देते हैं,नरकों में गर्मी इतनी होती है की सुमेरु पर्वत के समान लोहे का गोला भी पिघल जायेगा,और सर्दी इतनी होती है की सुमेरु पर्वत के सामान लोहे का गोला गल जाएगा,गलन आ जाएगी,गल जाएगा,शुरू के ४ नरकों में भीसन गर्मी और नीचे के तीन नरकों में भीसन सर्दी होती है.यह हमारी अपनी ही कहानी है,हमने भी इतने दुःख सेहन किये और आज कूलर,के बिना रह नहीं पाते हैं,नारकियों का दुःख उस समय और बढ़ जाता है,जब असुर कुमार देव उन्हें भिड़ते रहते हैं,लड़ाते रहते हैं,जिसके कारण यह नारकी जीव उनकी बातों में आ कर एक दुसरे की देह के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं,नरकों में पूरी आयु भोगनी पड़ती है,असुर कुमार देव तीसे नरक से नीचे नहीं जा सकते हैं.प्यास का दुःख तोह इतना है,कि अगर सागर जितना पानी भी उपलब्ध हो जाए तोह भी प्यास नहीं बुझेगी,लेकिन वहां पानी के एक बूंद नहीं है,नरकों में भूख इतनी लगती है,कि तीनों लोकों का नाज अगर उस नारकी (हम) को खाने के लिए दे-दिया जाए तोह भूख नहीं मिटेगी,लेकिन वहां एक कण भी उपलब्ध नहीं है,इस प्रकार यह जीव नरकों के दुःख को बहुत सागर कि आयु तक सेहन करता है,और किसी शुभ कर्म के उदय से मनुष्य गति कि और प्रस्थान करता है,नरक में रहते-रहते जीव के परिणाम सुधर जाते हैं,इसलिए मनुष्य गति मिलती है.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ धोक.
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