६ ढाला
पहली ढाल
मनुष्य गति के दुःख
गर्भ में और प्रसव जन्य दुःख
जननी उदर वस्यो नवमास,अंग संकुचते पायी त्रास,
निकसत जे दुःख पाए घोर,तिनको कहत न आवे ओर
बचपन,जवानी और बुढ़ापे के दुःख
बालपने में ज्ञान न लहो,तरुण समय तरुणीरत रहो,
अर्ध मृतक सम बुढ़ा पनो,कैसे रूप लखै आपनो
शब्दार्थ
१.जननी-माता
२.उदर-पेट
३.नवमास-नौ महीने
४.संकुचते-सिकुड़े रहे
५.त्रास-दुःख
६.निकसत-निकलने में
७.तिनको-जिनको
८.ओर-अंत
९.लहो-ज्ञान नहीं रहा
१०.तरुण-जवानी
११.तरुणी-जवान स्त्री
१२.अर्ध मृतक-मरे के सामान
१३.रूप-आत्मा स्वाभाव
१४.लखे-पहचाने
भावार्थ
यह जीव किसी शुभ पुण्य के उदय से मनुष्य योनी में भी चला गया,तोह माता के पेट में उससे गंदगी में नौ महीने तक रहा,उस जीव के शारीर के अंग सिकुड़े रहे..अगर हमें कोई अपने शरीर को सिकोड़ कर ५ मिनट तक रहने की कह दे,तोह हम कराह जायेंगे,लेकिन मनुष्य गति में यह सब दुःख हमने ही सहन किये हैं,और जब प्रसव के समय जब शरीर को माँ के उदर से निकला जाता है,तोह भी बहुत दुःख होता है,कभी कभी तोह हम जैसे दानव लोग गर्भपात करा देते हैं,और उसमें कोई भी शर्म नहीं करते हैं,ध्यान रखें हम भी अपनी माता के पेट में ऐसे ही गंध्गी में पले थे,लेकिन हम अज्ञानी लोग इस बात को भूल जाते हैं,जब शरीर को उदर से निकाला जाता है,तोह पूरा शरीर खून से या गंदगी से सना हुआ होता है,और वेह जीव दुःख का अनुभव करता है...जिन का वर्णन हमारे द्वारा होना असंभव ही है..क्योंकि प्रसव और गर्भ के दुखों का जितना वर्णन करो उतना कम है..अब जैसे तैसे मनुष्य शरीर के साथ बालक हुआ,तोह उसे ज्ञान नहीं दिया गया,बचपन में ही बुरी आदतें सिखा दी गयीं,हिंसा की सामिग्री प्रतीकात्मक ढंग से दे दी गयी,यानी की आत्मा का धर्म का जरा सा भी गया नहीं दिया..जब मनुष्य शरीर और बड़ा हुआ तोह वेह स्त्री के मोह में पड़ा रहा...और व्यर्थ में ही दुखी रहा..न मंदिर गया..न पूजा की..न आत्मा को जाना..और अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा उसी में बिता दिया...जब वृद्ध हुआ तोह अर्ध मरे के सामान ही रहा...और अर्ध मरण तोह मरण से भी ज्यादा दुःख दाई है...मरे को चार लोग पकड़ते हैं,और अर्ध मरे को २ लोग पकड़ते हैं..सँभालने के लिए....और यह सोचने बाली बात है.की कोई ऐसी अवस्था में आत्मा के ज्ञान की प्राप्ति कैसे कर सकता है.और अपने आनंद स्वरुप की पहचान कैसे कर सकता है....इस प्रकार इतनी दुर्लभता से मिली मनुष्य योनी ऐसे ही बिता दी,जैनी कुल मिला,स्वस्थ शरीर मिला,अच्छा परिवार,उच्च गोत्र मिला,ज्ञान धारण करने का मौका मिला...जो की सिर्फ सतिश्य पुण्य के उदय से मिलता है...और उसको भी मोह रुपी महा मदिरा के नशे में लीन रह कर खो दिया ..कोई कल्याण नहीं हुआ.यह हमारी अपनी ही कहानी है.....और इसकी वजह से ही हम दुखी रहे..दुखी हैं..और गुरु की सीख को नहीं माना तोह दुखी ही रहेंगे...
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-श्रीमति पुष्पा बैनाडा जी.
जा वाणी के ज्ञान से,सूझे लोक लोक,सो वाणी मस्तक नमो,सदा देत हूँ ढोक.
अपने विचार जरूर दे..
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