आप
सभी से निवेदन है की स्वाद्ध्याय का मेल पड़ते समय जूते आदि उतार कर मुँह साफ़ करके पड़ें | विनय का विशेष ध्यान देवें |
मंगलाचरण : कर्मों के अभाव से जिनको अपने शुद्ध स्वभाव की प्राप्ति हो गई है, उन सिद्ध परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ |
कल हमारा प्रश्न था की
परन्तु आज हम पंचम काल में हैं और पंचम काल में मोक्ष नहीं होता तो फिर जब अभी योग्य काल आदि नहीं है तो हम परमात्मा नहीं बन सकते और जब हम परमात्मा नहीं बन सकते तो फिर व्रतों को पलने का क्या लाभ ?
तो आचार्य उत्तर देते हैं
गाथा ३ :
अव्रत अवस्था में मरण कर नरकों में जाने की अपेक्षा व्रत पालन कर स्वर्ग में जाना श्रेष्ठ है | क्योंकि रास्ते में इंतज़ार के लिए छाँव में और धूप में बैठने वालों में बड़ा भारी अंतर है |
भावार्थ : यदि कोई किसी व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहा है, तो जिस व्यक्ति की प्रतीक्षा की जा रही है वह जब आना है तब ही आएगा | तो जब तक वह व्यक्ति नहीं आया तब तक जो व्यक्ति परीक्षा कर रहा है वह धुप में भी खडा रह सकता है और छाँव में भी |
हम स्वयं सोचें की कौनसा व्यक्ति श्रेष्ठ है | किसी की प्रतीक्षा धुप में खड़े होकर करने से श्रेष्ठ है की छाँव में खड़े होकर की जाये |
उसी प्रकार यहाँ पंचम काल में जीव मोक्ष पाने के लिए उचित काल अर्थात चतुर्थ काल की प्रतीक्षा कर रहा है | अब हम चाहें तो वह प्रतीक्षा धुप में अर्थात नरक में रहकर कर सकते हैं और चाहें तो वाही प्रतीक्षा स्वर्ग में अर्थात छाँव में कर सकते हैं |
व्रतों का जो पालन करते हैं उनको स्वर्ग मिलता है और जो व्रतों का पालन नहीं करते उनको नरक मिलता है | तो चतुर्थ काल की प्रतीक्षा करने के लिए व्रतों का पालन करते हुए स्वर्ग जाकर प्रतीक्षा करना श्रेष्ठ है इसलिए इस काल में अभी हमें भले ही मोक्ष नहीं मिल सकता लेकिन हमको व्रतों का पालन करना चाहिए ताकि हमको स्वर्ग मिले और हम वहां चतुर्थ काल का इंतज़ार कर सकें |
अब शिष्य प्रश्न करता है की क्या व्रतों का पालन करने से स्वर्ग मिल जायेगा ?
इसका उत्तर आचार्य गाथा ४ में देते हैं जो हम कल पड़ेंगे
कल मैं इष्टोपदेश ग्रन्थ के रचियता के विषय में बताना भूल गया था
| आप सभी ने याद दिलाया उसके लिए धन्यवाद | उनका परिचय शीघ्र ही तैयार करके में आपको भेजता हूँ |
इसके साथ कुछ अलग से भी कहना चाहूँगा
आचार्य गुरुवर श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में एक हाइको प्रयोग किया था
पर की पीड़ा
अपनी करुणा की
परीक्षा लेती
आप लोगों के पास भी यदि किसी साधू की कोई अच्छी रचना हो तो भेजें ताकि सभी को लाभ मिल सकें
|
आपका सहयोग हमेशा प्रार्थनीय है
|
जिनवाणी स्तुति
:
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोका लोक सो वाणी मस्तक नमू सदा देत हूँ धोक
हे जिनवानी भारती तोहे जपूं दिन रेन जो तेरी शरणा गहे सो पावे सुख चेन
सभी से निवेदन है की स्वाद्ध्याय का मेल पड़ते समय जूते आदि उतार कर मुँह साफ़ करके पड़ें | विनय का विशेष ध्यान देवें |
मंगलाचरण : कर्मों के अभाव से जिनको अपने शुद्ध स्वभाव की प्राप्ति हो गई है, उन सिद्ध परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ |
कल हमारा प्रश्न था की
परन्तु आज हम पंचम काल में हैं और पंचम काल में मोक्ष नहीं होता तो फिर जब अभी योग्य काल आदि नहीं है तो हम परमात्मा नहीं बन सकते और जब हम परमात्मा नहीं बन सकते तो फिर व्रतों को पलने का क्या लाभ ?
तो आचार्य उत्तर देते हैं
गाथा ३ :
अव्रत अवस्था में मरण कर नरकों में जाने की अपेक्षा व्रत पालन कर स्वर्ग में जाना श्रेष्ठ है | क्योंकि रास्ते में इंतज़ार के लिए छाँव में और धूप में बैठने वालों में बड़ा भारी अंतर है |
भावार्थ : यदि कोई किसी व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहा है, तो जिस व्यक्ति की प्रतीक्षा की जा रही है वह जब आना है तब ही आएगा | तो जब तक वह व्यक्ति नहीं आया तब तक जो व्यक्ति परीक्षा कर रहा है वह धुप में भी खडा रह सकता है और छाँव में भी |
हम स्वयं सोचें की कौनसा व्यक्ति श्रेष्ठ है | किसी की प्रतीक्षा धुप में खड़े होकर करने से श्रेष्ठ है की छाँव में खड़े होकर की जाये |
उसी प्रकार यहाँ पंचम काल में जीव मोक्ष पाने के लिए उचित काल अर्थात चतुर्थ काल की प्रतीक्षा कर रहा है | अब हम चाहें तो वह प्रतीक्षा धुप में अर्थात नरक में रहकर कर सकते हैं और चाहें तो वाही प्रतीक्षा स्वर्ग में अर्थात छाँव में कर सकते हैं |
व्रतों का जो पालन करते हैं उनको स्वर्ग मिलता है और जो व्रतों का पालन नहीं करते उनको नरक मिलता है | तो चतुर्थ काल की प्रतीक्षा करने के लिए व्रतों का पालन करते हुए स्वर्ग जाकर प्रतीक्षा करना श्रेष्ठ है इसलिए इस काल में अभी हमें भले ही मोक्ष नहीं मिल सकता लेकिन हमको व्रतों का पालन करना चाहिए ताकि हमको स्वर्ग मिले और हम वहां चतुर्थ काल का इंतज़ार कर सकें |
अब शिष्य प्रश्न करता है की क्या व्रतों का पालन करने से स्वर्ग मिल जायेगा ?
इसका उत्तर आचार्य गाथा ४ में देते हैं जो हम कल पड़ेंगे
कल मैं इष्टोपदेश ग्रन्थ के रचियता के विषय में बताना भूल गया था
| आप सभी ने याद दिलाया उसके लिए धन्यवाद | उनका परिचय शीघ्र ही तैयार करके में आपको भेजता हूँ |
इसके साथ कुछ अलग से भी कहना चाहूँगा
आचार्य गुरुवर श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में एक हाइको प्रयोग किया था
पर की पीड़ा
अपनी करुणा की
परीक्षा लेती
आप लोगों के पास भी यदि किसी साधू की कोई अच्छी रचना हो तो भेजें ताकि सभी को लाभ मिल सकें
|
आपका सहयोग हमेशा प्रार्थनीय है
|
जिनवाणी स्तुति
:
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोका लोक सो वाणी मस्तक नमू सदा देत हूँ धोक
हे जिनवानी भारती तोहे जपूं दिन रेन जो तेरी शरणा गहे सो पावे सुख चेन
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