६ ढाला
तीसरी ढाल
निश्चय रत्नत्रय का स्वरुप
पर द्रव्यन्तैं भिन्न आप में रूचि सम्यक्त्व भला है
आप रूप को जानपनो सो सम्यक्ज्ञान कला है
आप रूप में लीन रहे थिर सम्यक्चारित्र सोई
अब व्यवहार मोक्ष मग सुनिए,हेतु नियत को होई.
शब्दार्थ
१.पर-दुसरे
२.द्रव्यन्तैं-द्रव्यों से
३.भिन्न-अलग
४.आप में-आत्मा में
५.सम्यक्त्व-निश्चय सम्यक दर्शन
६.भला-हितकारी
७.जानपनो-जान जाना
८.सो-वह
९.थिर-स्थिर,अटल
१०.सोई-है
११.हेतु-कारण
१२.नियत-निश्चय रत्नत्रय
१३.होई-होने का
भावार्थ
मोक्ष मार्ग को पाने के लिए,आकुलता रहित अवस्था को पाने के लिए पर द्रव्यों से भिन्न,दूसरी वस्तुओं से,परायी वस्तुओं जैसे शरीर,हाथ,बेटा,पत्नी,पति,बहन,माँ,बाप इन सब से खुद को भिन्न मानना,आत्मा को भिन्न मानना निश्चय सम्यक दर्शन है..और आत्मा के चैतन्य,आनंद स्वरुप को जान जाना,दर्शन-ज्ञान स्वरुप को जान जाना ही निश्चय सम्यक्ज्ञान कला है...और आत्मा के रूप को जान कर उसी पे अटल रहना,नहीं डिगना..स्थिर रहना और आनंद मय होना..निश्चय सम्यक्चारित्र का वर्णन है...इन तीनों को एकता ही मोक्ष मार्ग है..जो किसी भी प्रकार की आकुलता,राग द्वेष से रहित है..अगर हमें इस अवस्था को प्राप्त करना है..तोह व्यवहार मोक्ष मार्ग को जानना होगा...जो निश्चय मोक्ष मार्ग का कारण है..जिसके बिना निश्चय रत्नत्रय की प्राप्ति नहीं हो सकती है.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
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