६ ढाला
तीसरी ढाल
व्यवहार रत्नत्रय का स्वरुप
जीव,अजीव तत्त्व अरु अश्रव बंध अरु संवर जानो
निर्जर मोक्ष कहें जिन तिनको,ज्यों का त्यों सरधानो
है सोई समकित व्यवहारी अब इन रूप बखानो
तिनको सुन सामान्य विशेषें,दिढ़ प्रतीति उर आनो
शब्दार्थ
१.अरु-और
२.जानो-जानना चाहिए
३.ज्यो-जैसे
४.तिनको-सातों तत्वों को
४.त्यों-तैसे
५.सरधानो-श्रद्धान करो
६.सोई-वह
७.समकित-सम्यक दृष्टी
८.व्यवहारी-व्यवहारिक रूप से
९.बखानो-बखान कर रहे हैं
१०.सामान्य-आम रूप से
११.विशेषें-विशेष रूप से
१२.दिढ़-अटल
१३.प्रतीति-विश्वास
१४.उर-मन
भावार्थ
श्री जिनदेव ने सातों तत्व (जीव,अजीव,अश्रव,बंध,संवर,निर्जरा और मोक्ष) का जैसा सच्चा स्वरुप बताया है,जैसा बताया है वैसा ही श्रद्धान करना व्यवहार रत्नत्रय है..इन सातों तत्वों का सच्चा श्रद्धान करने वाला व्यवहार सम्यक्दृष्टि है...अब इन सातों तत्वों के रूप का बखान कर रहे हैं...इनको सातों तत्वों के सच्चे स्वरुप को सामान्य और विशेष दोनों रूप से सुनना चाहिए....और मन में अटल विश्वास रखना चाहिए..अब इन सातों तत्वों का बखान कर रहे हैं.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय ( ६ ढाला-संपादक-पंडित रतन लाल बैनाडा,डॉ शीतल चन्द जैन.)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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