Wednesday, June 1, 2011

ANEKAANT AND EKANTVAAD

जैन धर्म में सप्तभंगी होते है :
१.स्यात आस्ति
स्यात नास्ति
३. स्यात आस्ति नास्ति
४.स्यात अवक्तव्य
...५.स्यात आस्ति अवक्तव्य
६.स्यात नास्ति अवक्तव्य
७.स्यात आस्ति नास्ति अवक्तव्य
इन सातों में अनेकांतवाद का और स्याद्वाद का सार छिपा हुआ है .
अनेकांतवाद में विरोधाभास का अभाव बहुत कम पाया जाता है या विरोध उत्पन्न होता ही नहीं है जबकि एकान्त्वाद में विरोधाभास रहता है क्यों की अनेकांतवाद कहता है की ऐसा "भी " हो सकता है , वहीँ  एकान्तवाद कहता है की ऐसा "ही" है . यहाँ "भी"और "ही" में बहुत अंतर है . उदाहरण के लिए मान लो दो व्यक्ति है एक भारत का समर्थक है और दूसरा पाकिस्तान का.कोई तीसरा मान लीजिए मीडिया वाले किसी से पूछे की  मैच कौन जीतेगा तो दोनों अपने देश को "ही" विजेता बाताएँगे ये एकान्तवाद है इससे दोनों में झगडा भी हो सकता है जबकि अनेकान्तवादी ये कहता है की कोई "भी" जीत सकता है .इस तरह से अनेकांतवाद जैन धरम का मूल सिद्धांत है . अन्य किसी धर्म में अनेकांतवाद का अस्तित्व हो नहीं सकता क्योंकि जैन धर्म ही मूल है बाकी सब मिथ्यात्व है . जय जिनेन्द्र

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