उत्तर की ओर सिर कर नहीं सोना चाहिए |
अर्थात दक्षिण की ओर पैर कर नहीं सोना चाहिए |
कुछ इसे अंधविश्वास भी मानते हैं |
वे कहते हैं कि क्या फर्क पड़ता है ?
हमारे शरीर में २ प्रकार के विद्युत हैं -
एक पोजिटिव ( घन विद्युत ) और एक नेगटिव ( ऋण विद्युत )|
शरीर का ऊपर का जो भाग है -
आँख, कान, नाक, सिर, मुंह -
इन सब में घन विद्युत है |
नीचे का जो भाग हैं -
पैर, जांघ आदि -
इन सब में ऋण विद्युत है |
व्यक्ति ब्रह्माण्ड से, जगत से भिन्न नहीं होता |
विश्व में २ ध्रुव है - उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव |
उत्तरी ध्रुव में बिजली का अटूट भण्डार है |
मानो सैकड़ों सूर्य उग आये हों |
दक्षिणी ध्रुव में भी इतनी ही विद्युत है |
उत्तरी ध्रुव में घन विद्युत है और दक्षिण में ऋण |
जब सोते समय पैर दक्षिण की तरफ होते हैं,
तब दक्षिण से जो विद्युत का प्रवाह आता है
वो ऋणात्मक होता है और पैर की विद्युत भी ऋणात्मक होती है |
जहां दो ऋणात्मक विद्युत मिलती है,
वहां प्रतिरोध होता है, टक्कर होती है |
इस स्थिति में व्यक्ति के मन में चिंता उत्पन्न होती है, बुरे-बुरे स्वप्न आते हैं
और शरीर में बीमारियां तथा विकृतियां उत्पन्न होती है |
शारीरिक और मानसिक बीमारियां होती है |
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक " मन के जीते जीत " से
अर्थात दक्षिण की ओर पैर कर नहीं सोना चाहिए |
कुछ इसे अंधविश्वास भी मानते हैं |
वे कहते हैं कि क्या फर्क पड़ता है ?
हमारे शरीर में २ प्रकार के विद्युत हैं -
एक पोजिटिव ( घन विद्युत ) और एक नेगटिव ( ऋण विद्युत )|
शरीर का ऊपर का जो भाग है -
आँख, कान, नाक, सिर, मुंह -
इन सब में घन विद्युत है |
नीचे का जो भाग हैं -
पैर, जांघ आदि -
इन सब में ऋण विद्युत है |
व्यक्ति ब्रह्माण्ड से, जगत से भिन्न नहीं होता |
विश्व में २ ध्रुव है - उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव |
उत्तरी ध्रुव में बिजली का अटूट भण्डार है |
मानो सैकड़ों सूर्य उग आये हों |
दक्षिणी ध्रुव में भी इतनी ही विद्युत है |
उत्तरी ध्रुव में घन विद्युत है और दक्षिण में ऋण |
जब सोते समय पैर दक्षिण की तरफ होते हैं,
तब दक्षिण से जो विद्युत का प्रवाह आता है
वो ऋणात्मक होता है और पैर की विद्युत भी ऋणात्मक होती है |
जहां दो ऋणात्मक विद्युत मिलती है,
वहां प्रतिरोध होता है, टक्कर होती है |
इस स्थिति में व्यक्ति के मन में चिंता उत्पन्न होती है, बुरे-बुरे स्वप्न आते हैं
और शरीर में बीमारियां तथा विकृतियां उत्पन्न होती है |
शारीरिक और मानसिक बीमारियां होती है |
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक " मन के जीते जीत " से
BY-CHANCHAL BOTHRA JI
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