Wednesday, June 1, 2011

jain bhajan

हम हुए पर के दीवाने एसे .................          
हम हुए पर के दीवाने एसे...२ !       
पतंगा कोई , दीपक पर झपटता हो जैसे !!        
हम हुए पर के...........         
षट दृव्य मयी सृष्टि सारी ....२ !        
गेय न मानकर , इष्ट अनिष्ट मानी सदा ही  !!         
हम हुए पर के...........        
शुभा शुभ दोनों ही आस्रव हैं ...२ !        
हेय होते हुए भी , लगते हमें हितकर हैं !!        
हम हुए पर के...........       
संवर  निर्जरा जो हैं हितकारी ....२ !       
प्रगटाए नहीं ,और माना उन्हें दुःख करी ....!!
हम हुए पर के...........        
निज आतम का ध्यान था धरना ...२ !        
नहि ध्याया मगर ,पर को निज करने का देखा सपना .....!!      
हम हुए पर के...........        
पर द्रव्यों को ही अपनाया...२ !       
दुःख पाए  मगर निज आतम कभी नहि ध्याया ...!!         
हम हुए पर के...........         
ज्ञेय को जानने योग्य न माना , हेय को त्यागने योग्य न माना...२ !      
जो उपादेय है , उनको भी तो न पहचाना ...!!     
हम हुए पर के...........         
मिथ्या मान्यता ये जब तक खड़ी है ...२ !         
मोक्ष की बात क्या, शिव मग दिल्ली दूर बड़ी है ....!!          
हम हुए पर के...........         
ज्ञेयों में न करें  बंटवारा ....२ !         
ध्येय का ध्यान हो, "नायक" हो जाए सब निबटारा ....!!         
हम हुए पर के...........

1 comment:

  1. A good Bhajan full of Adhyatam. Carry on sir. Write some more .
    Ashok Jain Nasirabad

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