Friday, November 18, 2011

khar-dooshan ka maran,aur seeta haran

खर-दूषण का मरण,सीता हरण की कहानी
...चन्द्रनखा का पुत्र शंबू दंडक वन में सूर्य-हास खडग विद्या सिद्ध करने दंडक वन में गया हुआ था..उसकी विद्या सिद्धि के सिर्फ कुछ दिन ही बचे थे...लक्ष्मण जी तोह दंडक वन में वनवास की वजह से  चलते हुए पहुंचे ही थे...जहाँ उन्होंने दो मुनिराजों को आहार भी कराया...और जटायु पक्षी का पूरा दृष्टांत हुआ जिसके बारे में हम पढ़ चुके हैं..लक्ष्मण जी वन में ही टहल रहे थे...उन्हें बांस के बीड़ों के पास से अजीव सी खुशबु आई (वहां शंबू बैठ कर तप कर रहा था..और तलवार आकाश में अधर लटकी हुई थी..उस तलवार सिद्धि के लिए ही नियम था की समय पूरा न हो पाए और कोई दूसरा इस तलवार को उठा ले तोह विद्या सिद्ध नहीं हो पाती..मतलब फिर विद्या सिद्ध नहीं होती है..लक्ष्मण जी बांस के बीड़ों तक पहुंचे और तलवार को उठा लिया (उस तलवार की रक्षा कर रहे देवों ने तलवार को लक्ष्मण जी को दे-दिया)..बांस के बीड़े काफी बड़े थे..तोह लक्ष्मण जी को तलवार उठाने में और थोडा तलवार चलने में बांस के बीड़ों में शम्बू का सर न दिखने से शम्बू का सर भी कट गया..लक्ष्मण जी को इस बारे में नहीं पता था..और वह प्रसन्न होकर वापिस गए..श्री राम को इस विषय में बताया तोह वह भी थोडा सोच में पड़े..जब चन्द्र-नखा पुत्र को देखने आई तोह विलाप करने लगी...आस-पास जंगले में देखा..राम-लक्ष्मण को देख कर मोहित हो गयी..लेकिन न राम ने और न ही लक्ष्मण ने उन्हें स्वीकार किया...वह उनसे द्वेष भाव रखकर खर-दूषण  के पास गयी..और कहा की "राम लक्ष्मण ने ही पुत्र को मारा है...और उन्होंने मेरे साथ गलत-व्यवहार  भी किया है..खरदूषण ,चन्द्र-नखा का पति,जो की अकेले १४००० राजाओं का रहा था...उसने रावण को इस विषय में जानकारी दी..जिससे रावण उधर से दंडक वन की और चला...उधर खरदूषण ने सोचा की मैं तोह खुद १४००० राजाओं का राजा हूँ..भूमि-गोचारियों से तोह मैं भी लडूंगा..तोह वह भी लड़ने चल पड़ा...खर-दूषण जंगल में पुत्र को देखकर विलाप करने लगा..और वहां कई विमान इकट्ठे हो गए...जिससे राम-लक्ष्मण को लगा की कोई शत्रु है..लक्ष्मण जी को लगा की जरूर तब मैंने तलवार ली होगी,जब शायद वह किसी की हो,या उस तलवार से शायद किसी का सर कट गया हो,शंखनाद की आवाज सुनकर लक्ष्मण जी युद्ध करने चले गए...उधर दूसरी तरफ से रावण आ-रहा था आकाश मार्ग से,उसने सीता को देखा और मोहित हो गया..सारी बुद्धि-विवेक वश में नहीं रही..और काम में ऐसा आसक्त हुआ और सोचने लगा की क्यों न मैं राम को माया-चारी से लक्ष्मण के पास ही भेज दूं..उसने विद्या के प्रभाव से लक्ष्मण की आवाज निकाली..जिससे राम तुरंत बांस के बीड़ों की और जाने लगे,और जटायु पक्षी को रक्षा करने के लिए बोल-गए..(दूसरी तरफ लक्ष्मण जी तोह खर-दूषण से तोह बहुत अच्छे से लड़ ही रहे थे..साथ में विराधित नाम का विद्या-धर भी उनके साथ था,जिसकी खर-दूषण से पुरानी दुश्मनी थी..सो वह भी लड़ा)...खर-दूषण को लक्ष्मण जी ने अकेले ही मार दिया,जो की १४००० राजाओं का राजा था और रावण का सेनापति था)...दूसरी तरफ रावण उधर सीता जी को उठा कर ले गया...जटायु पक्षी ने मदद करने के लिए पूरी ताकत लगायी,चौंच से लड़ा,..अंत में रावण ने उसे एक घूँसा देख-कर गिराया..जिससे वह गिर गए....राम जब पहुँचते तोह पता चला की उसने उन्हें नहीं बुलाया..तोह बड़े चिंतित हुए और सीधे भागते-भागते सीता के पास गए..
लिखने का आधार शास्त्र श्री पदम्-पुराण जी हैं...बहुत बड़ी गह्तना को संक्षेप में लिखा है...अर्थ सम्बन्धी,लिखने में व्याकरण में,प्रमाद के कारण शब्दों में कोई भूल हो तोह बताएं और क्षमा करें.

जा-वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक

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