Tuesday, November 22, 2011

राम चन्द्र जी का पाताल-लंका जाना अदि कथाएँ
बलभद्र राम चन्द्र सीता को कुतिया के पास न पाकर मूर्छित हुए...जगे तोह भी सीता को नहीं पाया,लक्ष्मण ने,विराधित ने काफी समझाया...श्री राम सीता को बार-बार आवाज देते हैं..नदियों से कहेंगे की क्या तुमने सीता को देखा,फूलों से कह रहे की क्या तुमने सीता को देखा..लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं,जवाब देंगे भी कैसे?..इस तरह राम-चन्द्र सोच में पद गए..कह रहे हे सीता तुम प्राणों की प्यारी कहाँ गयीं...तुम परम-गुणवान,शुभ कर्म के उदय से ऐसी स्त्री मिली...तुम गुणों की खान,कहीं तुम चुप तोह नहीं गयी हो,क्या आर्यिका दीक्षा तोह नहीं ले ली,या कोई तुम्हे उठाकर तोह नहीं ले गया.,इन कर्मों की वजह से जीव संसार में भटकता है...यह कौनसे अशुभ कर्म का फल है...जिससे मेरा सीता से वियोग हुआ..हे प्राण-प्यारी..,कहाँ हो तुम..इस तरह से सोच में पड़े...विराधित ने और लक्ष्मण ने सांत्वना दी,श्री राम के दुःख से मानो पेड़ पौधे भी दुःख में पड़े हों...विराधित ने कहा की यहाँ रहना ठीक नहीं है..क्योंकि अभी लक्ष्मण जी ने खर-दूषण का वध किया है..इसलिए वहां से आक्रोश यहाँ होंगा...शत्रुओं का आक्रमण हो सकता है...ऐसा कहकर विराधित लक्ष्मण सहित विमान में बैठ-कर पाताल लंका की ओर चले..विमान  में बैठे राम लाश्मन सीता के बिना नहीं सोभते,जैसे सम्यक-दर्शन के बिना सम्यक-ज्ञान और सम्यक चरित्र नहीं शोभते हैं..उधर रावण सीता को ले जा रहा था तोह भामंडल का दूत भी उसी मार्ग से जा रहा था)..तोह उसने रावण से युद्ध किया काफी रोकने की कोशिश की..लेकिन रावण ने उसकी सारी विद्या हर ली...और उसको बिना विद्या के अपनी विद्या के बल से नीचे एक अंतर-द्वीप पे छोड़ दिया..जिससे वह विद्या के बिना अति दुखी हुआ..और कर्मों को कोसने लगा..और वहीँ उस द्वीप पे रहता,इधर सीता कर्मों को कोसती...हाय मैं मंद-भगिनी कर्मों के उदय से यहाँ पहुँच गयी..यह पापी क्या करेगा.

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