Sunday, December 11, 2011

TATVARTH SOOTRA-ADHYAY TEEN

TATVARTH SOOTRA-ADHYAY TEEN

रत्नशर्कराबालुकापंक धूमतमोमहातमः प्रभा भूमयो घनाम्बुवाताकाश प्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः।। 1
रत्न प्रभा,शर्करा प्रभा,बालुका प्रभा,पंक प्रभा,धूम-प्रभा,तम-प्रभा,महा-तम प्रभा यह अधो लोक में सात पृथ्वियों के नाम हैं

तासु त्रिंशत्पंचविंशति पंचदशदशत्रिपंचोनैकनरकशतसहस्राणि पंच चैव यथाक्रमम्।। २

उन पृथ्वियों में पहली पृथ्वी में तीस लाख बिल हैं,दूसरी पृथ्वी में २५ लाख बिल है,तीसरी पृथ्वी में १५ लाख बिल हैं,चौथी पृथ्वी में १० लाख बिल हैं,पांचवी में तीन लाख,छठी में ५ कम एक लाख,और सातवी  में ५ बिल हैं. (बिल यानि की जहाँ नारकी-जीवों के निवास स्थान हैं)
नारका नित्याशुभतरलेश्यापरिणाम देहवेदनाविक्रियाः
इन नरकों में परिणामों की अशुभता. पहले से सातवी  तक बढती है,लेश्या कपोत से कृष्ण होती जाती है,देह का रंग भी भद्दा अशुभ होता जाता है,और वेदना  भी पहले से सातवे नरक तक बढती है
परस्परोदीरितदुःखाः।।
यह नारकी जीव एक दुसरे को भी कष्ट पहुंचाते हैं
संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः।।
असुर कुमार देव भी विशेष अवधि ज्ञान के माध्यम से इन नार्कियों को पूर्व-जन्म की याद दिला-कर एक दुसरे से लड़ाते हैं
तेष्वेकत्रि सप्त दशसप्तदशत्दवा विंशति त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमासत्त्वानां परा स्थितः।।
इन नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयु पहली पृथ्वी  के बिलों में रहने वाले नारकी-जीव उत्कृष्ट एक सागर,दूसरी पृथ्वी-तीन सागर,चौथी पृथ्वी सात-सागर,पांचवी पृथ्वी दस-सागर,छठी पृथ्वी २२ सागर और सातवी पृथ्वी ३३ सागर है.
जम्बूद्वीप लवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्रा।।
जम्बू-द्वीप,लवण समुद्र अदि द्वीपों और समुद्रों के शुभ नाम हैं..यह असंख्यात हैं और मध्य लोक में हैं
द्विर्द्विर्विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः।।

हर-द्वीप,समुद्र से घिरा है और हर समुद्र द्वीपों से घिरा है.,हर द्वीप और हर समुद्र गोला-कार हैं..और उनका diameter पिछले वाले द्वीपों से दुगना-दुगना होता-जाता है
तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्रविषकम्भो जम्बूद्वीपः।। 
उन सब के मध्य में बीचों-बीच जम्बू-द्वीप है जो गोला-कार है और १ लाख योजन diameter  वाला है..और इस जम्बू-द्वीप के बीच में सुमेरु पर्वत है.
भरतहेमवतहरिविदेह रम्यक हैरण्ेयवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि।। 
भरत,हेमवत,हरी,विदेह,रम्यक,हैरान्यावत,एरावत यह सात क्षेत्रों के नाम हैं
तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मि शिखरिणो वर्णधरपर्वताः।। 
यह सात-क्षेत्र ६ पर्वतों के द्वारा एक दुसरे से विभाजित होते हैं,उनके नाम है हिमवान,महा-हिमवान,निषध,नील,रुक्मी,शिखरी,वर्ण-धर यह पर्वतों के नाम हैं...जो पूर्व से पश्चिम तक हैं
हेमार्जुनतपनीय वैडूर्यरजत रेममयाः।।
उनके रंग पहले पर्वत का सोने जैसा,दुसरे का चांदी जैसा,तीसरे का गरम सोने जैसा,चौथे का वैदूर्यमणि जैसा,पांचवे का चांदी जैसा और छठे का सोने जैसा है.
मणिविचिक्षपर्श्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः।।
यह पर्वत नीचे,बीच में से और ऊपर से एक जैसे हैं और यह मणियों से भरे हैं.
पद्ममहापद्मतिगिञ्छकेसरि महापुण्डरीकपुण्जरीकाहृदास्तेषामुपरि।।
पद्मा,महा-पद्मा,Tiginchha ,केसरी,पुंडरिक और महा-पुंडरिक इन पर्वतों के ऊपर तालाव हैं उनके नाम हैं.
प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्धविषकम्भो ह्रदः।।
पद्मा-सरोवर १००० योजन लम्बा,पञ्च-सौ योजन मोटा है.
दशयोजनावगाहः।।
और १० योजन गहरा है
तन्मध्ये योजनं पुष्करम्।। 
उस के मध्य में १ योजन का कमल है.(जो की पृथ्वी-कायिक है)
तद्द्विगुणद्विगुणाह्रदः पुष्कराणि च।।
 ,महा-पद्मा पद्मा से दुगना,फिर उसके बाद वाला महा-पद्मा से दुगना है..और कमल भी एक दुसरे से दुगना है..,केसरी,पुंडरिक और महा-पुंडरिक की अवगाहना  पद्मा,महा-पद्मा,Tiginchha के जैसी हैं..

तन्निवासिन्यो देव्यः श्री ह्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः ससामानिक परिषत्काः।।

उन कमलों में देवियाँ रहती हैं जिनके नाम श्री-ह्रीं,धृति,कीर्ति,बुद्धि,लक्ष्मी हैं जो समनस्क और परिषत्क देवों के साथ रहती हैं और इनकी आयु एक पल्य की है.
गंगासिन्धु रोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तै सीतासीतोदानारीनरकान्ता सुवर्ण रूप्यकूला रक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः।।
गंगा सिन्धु भरत क्षेत्र में बहती है,रोहिता रोहितास्या हेमवत क्षेत्र में बहती है,हरित-हरिकान्ता हरी क्षेत्र में,सीता-सीतोदा विदेह क्षेत्र में,नारी नरकांता रम्यक क्षेत्र में,सुवर्ण रुप्यकुला  हैरान्यावत क्षेत्र में और रक्ता-रक्तोदा ऐरावत क्षेत्र में बहती है

द्वयोर्द्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः।।
गंगा,रोहिता,हरित,सीता,नारी,सुवर्ण,रक्ता नदी पूर्व की और बहती है और पूर्वी समुद्र में जाती हैं
शेषास्त्वपरगाः।।
बाकी की नदी पश्चिम की और बहती हैं और पश्चिम समुद्र में जाती हैं.
चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृता गंगासिन्ध्वादयो नद्यः।। 
गंगा और सिन्धु दोनों से निकलने वाली उपनदियाँ १४०००-१४००० हैं. रोहित-रोहितास्या से निकलने वाली उपनदी २८००००-२८००० हैं,हरित-हरिकान्ता से निकलने वालीं ५६०००-५६००० हैं, सीता-सीतोदा से निकलने वाली ११२०००-११२००० हैं..फिर नारी-नरकांता से निकलने वाली ५६०००-५६००० हैं,सुवर्ण रुप्याकुला से निकलने वाली २८०००-२८००० हैं और रक्त-रक्तोदा से निकलने वाली १४०००-१४००० हैं
भरतः षड्विंशतिपंचयोजनशतविस्तारः षट्चैकोनविंशतिभागायोजनस्य।। 
भरत-क्षेत्र की चौड़ाई ५२६ ६/१९ योजन है
तद्द्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः।। 
क्षेत्रों में पर्वत की चौड़ाई और क्षेत्रों की चौड़ाई दुगनी-दूंगी होती जाती हैं विदेह-क्षेत्र तक.
उत्तर दक्षिणतुल्याः।। 
क्षेत्रों का माप और पर्वतों का माप उत्तरी और दक्षिणी पर्वतों का बराबर है.
भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः।।
भरत-ऐरावत और विदेह कर्म-भूमि हैं...जिनमें से भरत-ऐरावत क्षेत्रों में काल का परिवर्तन होता है..जिनमें आयु बढती हैं,शारीर की अवगाहना बढती हैं और कम भी होती हैं.
ताभ्यामापारा भुमयोडवस्थितः ।।
भरत-ऐरावत के अलावा बाकी के क्षेत्रों में काल-परिवर्तन नहीं होता है
एक -द्वि -त्रि -पल्योपामस्थितय हैमवतक-हरिवार्शाका दैवाकुरावाकाह:।।
हैमवत,हरि और देव कुरु यह भोग-भूमियों के नाम हैं..जिनमें मनुष्यों की आयु १ पल्य,दो पल्य और तीन पल्य है और शारीर की अवगाहना २०००,४००० और ६००० धनुष हैं,हेमवत में एक दिन बाद भोजन होता है,हरि में दो दिन बाद और देव-कुरु में तीन-दिन बाद भोजन ग्रहण होता है,शारीर का रंग नीला,सफ़ेद और सोने जैसा golden होता है.
तथोत्तरः।
वैसे ही हालत उत्तर में हैं,जैसे दक्षिण में हैं वैसी ही दशा उत्तर में है.
विदेहेषु संख्येयकालाः।।
विदेह क्षेत्र में असंख्य वर्ष की आयु है ७० लाख करोड़ वर्ष से ४८ मिनिट से थोड़ी कम तक,ऊंचाई ५०० धनुष
भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः।।
भरत-क्षेत्र जम्बू-द्वीप का १९० व हिसा हैं.
द्विर्धातकीखण्डे।।
घातकी-खंड द्वीप में पर्वतों की,सरोवरों की,नदियाँ जम्बू-द्वीप से दूनी हैं
पुष्कारर्धे च।।
पुष्करार्ध द्वीप में भी पर्वतों की,सरोवरों की और नदियाँ जम्बू-द्वीप से दूनी हैं,पुष्कराध द्वीप मानुषोत्तर पर्वत के द्वारा दो भागों में बांटता है.
प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः।।
मनुषोत्तर पर्वत की दूसरी ओर मनुष्य नहीं जा सकते.
आर्या म्लेच्छाश्च।।
मनुष्य दो प्रकार के हैं मलेच्छ और आर्य.
भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः।।
भरत-ऐरावत और विदेह (देव-कुरु और उत्तर कुरु छोड़ कर) भोगभूमि को  कर्म भूमियाँ हैं.
नृस्थितीपरावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्त।। 
मनुष्य की उत्कृष्ट आई ३ पल्य है और जघन्य आयु अंतरमुहूर्त है.
तिर्यग्योनिजानां च।। 
तिर्यन्चो की भी यही उत्कृष्ट और जघन्य आयु है

लिखने का आधार-मुनि श्री १०८ क्षमा सागर जी महाराज के द्वारा दिए हुए तत्वार्थ सूत्र पे प्रवचन. 



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