कहाँ गया वह तीन खंड का राज्य ..बहुत प्रेम था राम-चन्द्र बलभद्र को लक्ष्मण जी से..और लक्ष्मण जी को भी राम चन्द्र बलभद्र से.....एक बार एक देव ने लक्ष्मण के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए कान में कह-दिया की राम नहीं रहे तोह लक्ष्मण उसी समय मृत्यु को प्राप्त हुए...वैसे वह देव तोह सिर्फ निमित्त्त थे लक्ष्मण की मृत्यु के..और श्री राम को इतना प्रेम की लक्ष्मण को मृत मानने को तैयार नहीं सर पर उठाकर घूमने लगे..नेहला दिया,सिंहासन पर बैठा दिया,कह रहे अव पूजा का समय हो-गया,अब यह करने का समय हो गया,अब शारीर कहाँ से बोलेगा जब उसमें आत्मा ही नहीं है..शत्रु से लड़ने भी आये तोह लक्ष्मण को सर पर रख कर लड़ने आये,विभीषण ने उनको ज्ञान की बातें कहीं तब भी नहीं समझे..सुग्रीव ने कहा इनका दाह-संस्कार करो..उनसे दूर लेकर चले गए और कह रहे यह लोग मूर्ख हैं..जो जिन्दा को जलाना चाहते हैं..उधर जटायु और कृतान्त-वर्क सेनापति का जीव स्वर्ग में थे सिंहासन कम्पायमान हुआ..जटायु और कृतान्त-वक्र सेनापति के जीव उनकी मदद करने चले एक ने शत्रु पक्ष को आतुर किया तोह दूसरा पत्थर पे बीज बोने लगा,तोह जटायु पक्षी जा जीव भी आया तोह उसने भी ऐसे ही काम करने शुरू किये...राम ने कहा की कभी पत्थर पे पेड़ नहीं उगता तोह देव का जीव बोला मारा हुआ भी कभी जिन्दा नहीं हो सकता..काफी समझाने के बाद राम के अन्दर चेतना जागृत हुई...लक्ष्मण - शारीर का दाह-संस्कार कराया..और राम-चन्द्र बलभद्र खुद चल दिए मुनि बनने के लिए श्री सुव्रत स्वामी के पास,राम-चन्द्र जी के साथ सुग्रीव,नल,नील,महानील अदि कई विद्याधर राजाओं ने अथवा शत्रुघ्न ने भी दीक्षा ले ली.. अब राम-चन्द्र बलभद्र बन गए राम-मुनि..
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