Friday, March 9, 2012

क्या चमत्कार के लिए धर्म किया जाता है,क्या काम बनाने के लिए,क्या बिगड़ी हुई चीजें को बनाने के लिए धर्म किया जाता है...नहीं धर्म से मतलब होता है आत्मा से ...और जो आत्मा का  कल्याण करे वह धर्मं है...जिन दर्शनों में आत्मा के कल्याण की बात को न करते हुए,विषय भोग,पैसे,माया adi की बात की हो..तोह usmein dharmikta कहाँ रही,और उस धार्मिकता में और संसारिकता में क्या अंतर रह गया,कुछ नया क्या हुआ,कौनसी आत्मा का कल्याण हुआ...क्या किसी काम को   बनाने में शादी करने में  विषय भोगों में  आत्मा का कल्याण है?..क्योंकि अगर इनसे आत्मा का कल्याण है तोह पतन किस में  है...अगर इन  सब चीजों को shubh कहेंगे और इनसे सम्बंधित देवी देवताओं को पूजने से मोक्ष होगा...तोह फिर हर कोई जीव मोक्ष मार्ग पे आगे बढेगा..,और फिर संसार मार्गी और मोक्ष मार्गी में क्या अंतर रह  जाएगा, yeh तोह फिर  व्यापार और लौकिकता ही तोह मानी जायेगी..dharmikta कहाँ रही क्योंकि धर्म से हम सामना भाषा में क्या समझते हैं .?..आत्मा से मतलब रखे आत्मा का कल्याण...लेकिन क्या पैसे विषय भोगों से चमत्कारों से आत्मा का कल्याण है क्या?..मतलब ऐसे क्रियाएं जिसमें न आत्मा का कल्याण हो रहा है,दिन रात आकुलता,मोह-माया में ही आदमी फस हुआ है...वोह धर्म नहीं सिर्फ एक मजाक है..और धर्म कहना तोह धर्म शब्द का मजाक है...और हर जीव अपने कर्मों का फल भोगता है...काम क्रोध तोह संसार भ्रमण का कारण ही है,तोह कामी(बगल में स्त्री) क्रोधी )भक्त से  नाराज/प्रसन्न)को पूजने से कभी मोक्ष कैसे संभव है..यह बात एकदम विपरीत है,बीमारी को दूर करने के लिए बेमार की ही पूजा कीजाये...तोह इससे बीमारी बढ़ेगी ही..कम कैसे भी नहीं  हो सकती. ..अच्छा रागी-द्वेषी की बात गलत भी हो सकती है...राग-द्वेष के वशीभूत होकर जीव सही को गलत,और गलत को सही कर देता है,जैसे की कोई अध्यापक प्रिय (जिससे राग है_---उसको ज्यादा अच्छे अंक देता है,और द्वेष बच्चे से कम अंक देगा...इसलिए रागी-द्वेषी का नतीजा सही नहीं हो सकता...क्योंकि वह सही-सही नहीं बता पायेगा..माँ राग के कारण निर्दोष पुत्र को दोषी देखती है..इसलिए सही नहीं बता पाती....लेकिन जो वीतरागी होगा,निष्पक्ष होगा उसकी बात कभी भी गलत हो ही नहीं सकती...विषय भोगों से कभी आत्मा का कल्याण नहीं...जिसे वीतराग से राग है वह कभी रागी द्वेषी की पूजा कैसे कर सकता है...यह विचार करने की बात है,अच्छा अगर रागी-द्वेषी भगवन है तोह संसारी प्राणी कौन है????...अगर मोह माया,बीबी बच्चे के झंझटों में फस हुआ आदमी भगवन है तोह संसारी प्राणी कौन है...अगर हिंसा लड़ाई अदि करने से और हिंसकों की पूजा से स्वर्ग मिलेगा,तोह नरक किस्से मिलेगा...इसलिए ऐसे मिथ्या-वर्णन को देने वाले शास्त्रों को पढना-पढ़ाना बहुत ही खराब है...यह कभी भी जीव के अन्दर धार्मिकता के भाव नहीं लाने देंगे..उल्टा उसे और गिरा देंगे...

No comments:

Post a Comment