Friday, April 13, 2012

8 ANGS OF SAMYAK DARSHAN

निशंकित अंग -सर्वज्ञ देव द्वारा यह सारा वस्तु समूह अनेकभाव रूप कहा है सो क्या सत्य है या झूठ ऐसी शंका कदाचित भी नहीं करनी चाहिए.
१.देव शास्त्र गुरु के श्रद्धां से पहले अनुकम्पा का होना जरूरी है
२.निशंक यानि निस्पृह,निस्परिग्रही
३.सम्यक दृष्टी जीव निसर्गता की और जाता है और कहता है की सर्वज्ञ भगवन ने जैसा कहा है,वह यथार्थ  ही है,अन्यथा नहीं है,तलवार पर चढ़ा पानी नहीं उतरता,चाहे तलवार टूट जाए,ऐसे ही सम्यक-दृष्टी जीव प्राण छोड़ सकता है लेकिन मिथ्यात्व को प्रणाम नहीं कर सकता,
४.सर्वज्ञ निर्ग्रन्थ गुरु सत्य हैं या असत्य ऐसा शंका कभी नहीं करनी चाहिए,तत्वों का जो कथन सर्वज्ञ देव ने किया है वह ही यतार्थ है,भूतनाथ के स्वामी को छोड़ कर भूतों के पीछे दौड़ना,इतने पवित्र शाशन को छोड़कर कहाँ जा रहे हो.
५.रयन-सार में लिखा है,जो जीव पंचम काल में सम्यक्त्व को नहीं मानता,धर्म ध्यान को,धर्मात्माओं को नहीं मानता, वह घोर मिथ्यादृष्टि है

निकांक्षित    -इस जन्म में ऐश्वर्या अदि को परलोक में चक्रवाती नारायाण अदि के पदों के,एकान्तवाद से दूषित,अन्य धर्मों को भी नहीं chahein  
१.जब निशंक होता है जभी निकांक्षित भाव उत्पन्न होता है
२.आप धन से धर्म को मापने लग जाओगे,धन्य पुण्य पाप का परिणमन है,अतः यह लेने देने वाला शक्तिमान नहीं है,लेने देना का काम तोह बनिया करते हैं,राग-द्वेषी करते हैं
३.जहाँ से मांगने की बात शुरू होती है,वहां से लघुता शुरू होती है.

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