Saturday, April 14, 2012

हे वीतराग भगवन आपके द्वारा कहा हुआ धर्म ही सत्य है,यह प्रकट रूप से ही दिखाई देता है,क्योंकि कोई राग की पूजा करके वीतराग को कैसे प्राप्त हो सकता है,और रागी-द्वेषी की पूजा करेगा तोह राग ही पुष्ट होगा,और राग तोह संसार परिभ्रमण का मूल कारण है,कोई प्राणी संसार में दुखी ही क्यों है राग के कारण ही तोह दुखी है,जिसमें राग है,काम है वह तोह पराधीन है,वह क्या धर्म का स्वरुप बताएगा,क्या उसमें धर्म होगा,हे भगवन आपका धर्म प्रत्यक्ष और अनुमान रूप से सही है,जैसा आपने कहा है वैसा इस संसार में स्पष्ट ही नजर आता है,भगवन आप ने पेड़-पौधे में जीव बताया,दुनिया के किसी भी मिथ्या मत में इससे सम्बंधित कुछ भी नहीं था,लेकिन वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया की पानी में जीव है,लेकिन सच को साबित होने की क्या जरूरत है,जो सच है वह सच ही है,भला १८ दोषों से रहित,अनंत दर्शन,अनंत ज्ञान,अनंत सुख,अनंत बल,अनीन्द्रिय सुख को प्राप्त,वीतरागी,सर्वज्ञ और हितोपदेशी भगवान के द्वारा कही हुई बातें अटल सत्य नहीं होंगी तोह क्या होंगी...यह तोह एकदम ठीक बात है,

१८ दोषों से रहित वीतरागी अनंत गुणों की खान
कर्म मल को नष्ट कर पाया केवल ज्ञान
तुमने जीते मोह महाबली,जग जिससे से ग्रस्त है
कषायों के बादलों से प्रत्येक जीव रोग-ग्रस्त है
तुम रहित हो पसीने से,तन है परम पवित्र
तुम्हारे दर्शन से जन्मजात शत्रु भी बनते हैं मित्र
खेद से रहित तुम हो,मद-मृत्यु का नाश किया
उद्वेग,नीद,भय विस्मय रहित,
सकल द्रव्य के अनंत गुण,पर्याय को जानो
दर्पण के सामान लोकालोक की बातों को जानो
तुमने बताया मोक्ष मार्ग,शास्वत और स्वाधीन
अखंडित बाधा रहित आत्मोत्पन्न,दुःख से हीन.
सम्यक दर्शन ज्ञान चरित्र को मोक्ष मार्ग बताया
मिथ्या दर्शन,ज्ञान चरित्र को संसार कारण बताया
संसार में तोह दुःख ही दुःख है,सुख का यहाँ लेश नहीं
मोक्ष मार्ग पर चलें तोह सच्चा सुख मिलेगा वहीँ



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