Sunday, April 15, 2012

how to keep samta bhaav

कैसे रखें समता का भाव
हमने सच्चे देव शास्त्र गुरु को अपना जीवन समर्पित तोह कर दिया है,सिर्फ हमें इतना काम करना है की हम समता भाव रखना सीख लें,अनुकूल और प्रतिकूल संयोगों में सुखी-दुखी न हों,
ek बाबा जी थे,गाँव में रहते थे,उनके पास ek घोडा था और ek बेटा था,जो की युवक था...ek बार क्या हुआ की घोडा कहीं चला गया...नहीं मिला तोह सारे गाँव में खबर फ़ैल गयी,सब सोच रहे थे बाबा जी बहुत दुखी होंगे,लेकिन बाबा जी तोह अपना काम कर रहे थे,लोगों के कहा की बड़ा बुरा हुआ ek ही घोडा था,वह भी खो गया...बाबा जी ने कहा-इसको अच्छा या बुरा मत कहो,सिर्फ यह कहो की घोडा था वह अब नहीं है..लोग तोह यह ही सोचते हैं की बाबा का दिमाग ठीक नहीं है,समता धारण करने वाले को ऐसा ही कहा जाता है.....फिर क्या हुआ कुछ दिन बाद घोडा वापिस अस्तवल में आया,और उसके साथ २-४ घोड़े और आये,फिर से लोग आये और कहा अच्छा हुआ घोडा खो गया,वापिस आया तोह अपने साथ ३-४ घोड़े तोह ले आया,तब भी बाबा जी वैसे ही काम करते रहे ,बाबा जी ने कहा-इसे अच्छा बुरा मत कहो,इसमें क्या अच्छा,क्या बुरा,सिर्फ यह कहो की चार घोड़े और आ गए उस घोड़े के साथ....ek बार क्या हुआ वह बेटा ,पुराने घोड़े की सवारी करता था..उसने सोचा नए वाले घोड़े की सवारी करनी चाहिए,वह नया घोडा तेज था,तोह वह बच्चा गिर गया,और पैर में लग गयी...गाँव के लोग फिर आये ..और सोचने लगे बाबाजी दुखी होंगे,और बाबा जी से कहा -इससे अच्छा तोह ek ही घोडा था,नए घोड़ों के आने से पैर में चोट और आ गयी बेटे के-बाबा जी ने कहा इसमें क्या अच्छा और क्या बुरा,सिर्फ यह कहो की घोड़े से गिरकर बेटे के लग गयी...अब ek बार क्या हुआ शत्रु पक्ष ने देश पर आक्रमण कर दिया,तोह फरमान आया की हर घर से ek नवयुवक को सेना में भर्ती होना पड़ेगा,तोह गाँव से सभी नवयुवकों को ले गए..लेकिन  उस बालक को नहीं ले गए,क्योंकि पैर में लगी थी.....तोह गाँव के लोग फिर आये..और कहने लगे..की अच्छा हुआ पैर में लग गयी,नहीं तोह सेना में भर्ती होना पड़ता...बाबा जी ने फिरसे कहा-इसमें क्या अच्छा और क्या बुरा,सिर्फ यह कहो की बच्चा पैर में लग जाने के कारण नहीं गया...

हम इसमें देखते हैं की जो चीज इष्ट थी,वह अनिष्ट होती है,और अनिष्ट चीज इष्ट हो जाती है,हमें दोनों  में समता भाव रखना चाहिए,वास्तु का परिणमन उसकी योग्यता के अनुसार होता है,हमारे चाहने या न चाहने से नहीं होता है,पर्वत अगर सोचे की वह चलने लग जाए तोह ऐसा नहीं हो जाएगा...इसलिए संसार में समता भाव  के साथ रहना चाहिए,प्रतिकूल और अनुकूल परिस्थितियां दोनों में ही ek जैसा व्यवहार रखना चाहिए,जिसमें श्रद्धा और विवेक का होना बहुत जरूरी है,बच्चे कम मार्क्स आने पर आत्म-हत्या करते हैं,जब की कुछ भी इष्ट अनिष्ट नहीं है इस संसार में.



परम पूज्य मुनि श्री क्षमा सागर जी महाराज. के द्वारा बतलाई हुई कहानी से.

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