Wednesday, April 18, 2012

हे वीतराग भगवान मैं आपके अलावा अन्य किसी को नहीं मानु,क्या इसलिए मानू की वह हथियार रखे हैं,शत्रु से भय्बीत हैं,डरे हुए हैं,कमजोरी के लक्षण हैं....जिनके शत्रु विधमान है और लड़ने की आकुलता-व्याकुलता है,क्या इसलिए मानू की वह स्त्री के साथ बैठे हैं,काम से युक्त हैं,पराधीन हैं,महा दुखी हैं..क्या इसलिए मानू उन्होंने रक्षाशों का नाश किया,जिसका निर्माण उन्होंने खुद किया..और उसी को ख़त्म करके अपनी यश ख्याति चाहते हैं,जैसे कांग्रेस ने १०० रस पेट्रोल बढाया और ५० रूपये कम कर दिया,तोह कौनसा बड़ा एहसान किया है,कौन सी अच्छी बात है?...ऐसे ही उन देवी-देवताओं ने उन मिथ्या मत के हिसाब से अपने ही बनाये हुए राक्षसों से,अपने द्वारा उपद्रव,वरदान दिए हुए रक्षाशों को ख़त्म कर दिया,बनाया भी तोह उन्होंने ही था,और हिंसक की पूजा करने का भी क्या लाभ है,क्या हम देशभक्तों को भगवान मानकर पूजेंगे...क्या किसी ने किसी को राक्षसों से लड़कर,ख़त्म कर दुःख से निकाल भी दिया,तोह इसमें कौनसे आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त होने वाला है,यह तोह उल्टा संसार का कारण है,क्योंकि आत्मा का कल्याण तोह वैराग्य में,दर्शन-ज्ञान-स्वाभाव में हैं,शारीर से भिन्नत्व में है..तोह हिंसा करने वाली,या राक्षाशों से बचने वाले की पूजा करने से कौनसे वैराग्य भाव आयेंगे,कौनसे आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा,कौन से निर्मोह का भाव पुष्ट हुआ ,चलो  फिर लड़ भी लिया तोह उन्होंने यह जानते हुए भी वरदान ही क्यों  दिया की यह अहित करेगा,सं तोह भी जानते हुए दिया ही क्यों,मतलब खुद ही जानबूझ कर विनाश करवा रहे हैं और ठीक कर रहे हैं,क्या में इसलिए मानु?,और अगर यह जानते थे की यह विनाश कर रहा है तोह लड़ने की क्या जरूरत,वरदान वापिस नहीं ले सकते थे,क्या हथियार लेकर युद्ध करने की क्या जरूरत थी,यह तोह देखते ही भस्म कर देते ,खुद भस्मासुर से भागते क्यों रहे?
किसी नेता पार्टी ने पेट्रोल के दाम २०० रूपये कर दिए और कहा की यह दाम २ साल बाद इस तारेक  को इस इस दिन इस आदमी के द्वारा वापिस सही कर दिए जायेंगे,या सही तभी होने जब ऐसी घटना होगी और मान लिया जाए की ऐसी घटना हो जाती है और वापिस उतने ही कर दिए,तोह उसमें कौनसे बड़ी बात है,कौन से उपकार की बात है,क्या देश की जनता यह कहेगी की यह पार्टी बहुत अच्छी है की इसने पेट्रोल को २०० रूपये कम कर दिया,या बताओ २०० रूपये कम कर diye..नहीं कहेगी क्योंकि वह जानती होगी की बढाया भी तोह उन्होंने ही था,कम कर भी दिया तोह कौनसी बड़ी बात,या उपकार की बात है..इतने सारे लोगों को नुक्सान हुआ वह क्या,वह जानता था,पार्टी के लोग जानते थे की नुक्सान होगा...उसी तरह अगर उनके मिथ्या मतों में मिथ्या देवों के द्वारा किसी को दिए हुए वरदान में कोई condition  रख दी..और उस condition  के पूरा होने पर उसका विनाश हो गया,तोह कौनसे आश्चर्य  की बात है,वरदान भी तोह खुद ही ने दिया था,जब वह जानते थे की इतना बुरा होगा विनाश होगा उपद्रव होगा तोह वरदान ही क्यों दिया...और condition  के हिसाब से नष्ट हो भी गया तोह उसमें कौनसे उपकार की बात है या पूज्यता की बात है,या तोह यह हो की सब जानते नहीं हो (लेकिन उन मिथ्या मतों में तोह सब जानते हैं).

या इसलिए मानू की अन्य देवी देव साधे साती लगने पर साधे सात महीने तक पेड़ की कोटर में छिपे रहे या इसलिए की भस्मासुर से दर कर भागते रहे या इसलिए की वह यह तक नहीं जानते की जिससे वह लड़ रहे हैं वह उन्ही का पुत्र है,वह तीनों लोकों की बातों को क्या जानें,क्या मैं इसलिए मानू की वह राग-द्वेष से लिप्त हैं पराधीन हैं,या इसलिए की चक्र गदा त्रिशूल से हिंसा करते हैं,जीवों को कष्ट देते हैं,और बिना किसी कारण से किसी को भी कैसे भी जीव के साथ अच्चा बुरा करते हैं,मतलब dictator  ship  करते हैं (क्योंकि उनके यहाँ कर्म सिद्धांत तोह हैं नहीं) या इसलिए मानू की वह भूख प्यास की वेदना से पीड़ित हैं और भूख की वेदना से महल के वर्तन अदि भी खा गए,या इसलिए मानू की इष्ट-और अनिष्ट संयोग में शोकाकुल होकर दुखी हुए,या इसलिए मानून की ग्रहण के दिन पद जाने पर जिनपे संकट पड़ जाते हैं,या इसलिए मानू की वह काम करके थकते हैं और सो भी जाते हैं..और कुछ महीनों बाद जागते हैं.....क्या इसलिए मानू की वह क्रोध मान माया लोभ से युक्त हैं और क्रोध में आकर किसी के साथ भी अच्छा बुरा करते हैं,क्या इसलिए मानून की वह शराब पीते हैं,क्या इसलिए मानून की शारीर आत्मा का भेद भी नहीं जानते,तीनों लोकों की बात को क्या जानेंगे,क्या इसलिए मानू की वह हर संसार के प्राणी की तरह मोह-माया में पड़े हैं,क्या इसलिए मानू की वह अवतार लेते हैं उन दुष्टों से लड़ने को जिसको उन्होंने खुद ने बनाया है..और खुद ने ही वरदान दिया है,क्या इसलिए मानू की वह संसार के प्राणी पे तानाशाई चलते हैं,या इसलिए मानू की उन्होंने दुनिया के अन्य जीव मानने लगे हैं,और उन मिथ्या द्वारों पे भीड़ लगती हैं,भीड़ तोह जादूगर के पास भी लगती है,दुनिया जो मानती है वह जरूरी नहीं ठीक हो,दुनिया तोह भ्रस्त नेता को भी वोते देती है,दुनिया को लगता है यह नेता अच्छा है,लेकिन क्या जो दुनिया मान रही है वह क्या जरूरी है ठीक हो,बड़ी-बड़ी कंपनी वाले मत देते हैं नेताओं को तोह क्या जरूरी है की उन्होंने मत दिया हो तोह वह नेता सच्चा हो,या उन नेताओं में भ्रस्त पण न हो,दुनिया तोह शराबी की भी पूजा करती हैऐसा कोई भी नहीं है जो कहदे की जो काम दुनिया कर रही है वह ठीक हो,बड़े बड़े परीक्षा में पढने में अच्छे बच्चे भी गलत कर आते हैं तोह ठीक बच्चे या कमजोर बच्चे सोचते हैं की वह होसियार आगरा का तोप्पेर क्या पागल है वह गलत नहीं हो सकता..और होता यह है की वह भी गलत निकल जाता है,इसका मतलब यह निकला की कोई पैसे वाला जिसे माने तोह जरूरी नहीं की वह देव सच्चा ही हो,क्या इसलिए मानू की मुरादे पूरी होती हैं,जिन मुरादों की वजह से जीव,जिन इच्छाओं की वजह से जीव इस संसार में जन्म-मरण के दुखों में भटका रहा है,वह एक बार को हो भी जाएँ तोह क्या अच्छा,जिस घर परिवार के नए गहने आ जाने से,शादी हो जाने से जीव आत्मा का चिंतवन नहीं कर पाटा या मोह माया में पड़ा रहता है या संसार के स्वरुप से विरक्त नहीं हो पाटा है,नियम व्रत नहीं ले पाता है,त्याग नहीं कर पाता है,धर्म के मतलब को नहीं समझ पाए अगर ऐसी इच्छाएं पूरी होती भी हों तोह यह तोह और संसार की ही कारण है,मांगने से घर मिल भी जाए तोह फिर जीव को वैराग्य न हो पाए और उस को अपना मानता रहे तोह उसमें कौनसी अच्छी बात है...यह तोह वह कारण हैं जिसके कारण जीव संसार में दुखी है.
और अगर इच्छाएं पूरी होती हैं तोह फिर देशमें फिर इतने लोग गरीब क्यों है,सब अमीर क्यों हो जाते हैं,क्यों इन मिथ्या देवों के स्थान पर बोम्ब-ब्लास्ट होते हैं,क्यों इन मिथ्या धर्मों के स्थान पर घटनाएं होती हैं,और क्यों चैन खींच लेते हैं,या पैसे निकलते हैं,तब यह देवी देवता क्या कर रहे होते हैं..क्या गुस्सा हो जाते हैं इसलिए चैन खिंचवाते हैं,तोह जिनको देव तोह बहुत दूर की बात भगवान माना जा रहा है वह तोह राक्षशों से भी गिरे हुए हैं,हो सकता है कोई राक्षश भी ऐसा न करे..क्या इसलिए मानू की उन देवों को प्यास की वेदना से पीड़ित है और प्यास लगने पर सरोवर बना लिया लेकिन इनमें कौनसा अस्चर्या है,क्या इसलिए मानू की भागते भागते शक्ति क्षीण हो गयी,शक्ति ख़त्म हो गयी और गुफा में छिप गयी जिससे शक्ति आये,या क्या इसलिए की वह परीक्षा लेते हैं भक्तों की इसलिए बुरा होता है,जबकि वह सब कुछ जानते हैं,अन्तर्यामी है तोह परीक्षा लेने की क्या जरूरत,या इसलिए की हिंसा के कामों में तत्पर होकर हिंसा नदी रौद्र ध्यान हो रहा है,या इसलिए की वह अपने जैसा किसी और को नहीं बना सकते ,और उनके जैसा क्षीण शक्ति वाला बनना भी कौन चाहेगा..या इसलिए मानू की युद्ध में अपने ही पुत्र से लड़ कर हार गए ऐसे देव,
या इसलिए मानू की अपने लोक में वापिस prasthaan करते हुए दुसरे देव से उन्होंने भक्तों के निवास स्थान का रास्ता पुछा,अगर सब जानते हैं तोह क्यों पुछा ,वह यह नहीं जानते तोह क्या तीनों लोकों की बातों को जानेंगे,और कहाँ से तीनों लोकों को हित का मार्ग बताएँगे,संसार का अच्छा बुरा नहीं बताएँगे तोह मोक्ष कैसे जायेंगे.


या इसलिए मानू की अजर अमर होकर भी डर ग्रहण साधे साती से युक्त हैं,भूख  प्यास,चिंता तृषा,मोह माया राग-द्वेष...से युक्त जीव अजर अमर कैसे हो सकता hai ,राग-द्वेष है मोह है तोह संसारी है,तोह अजर अमर कैसे हो गया,..और ऐसा अजर अमर मान्लेने से कोई पेन को घोडा कहने लगे तोह लोग भले ही मानने लगे ,लेकिन जो घोड़े का स्वरुप है वह घोड़े का स्वरुप रहेगा,और पेन पेन रहेगा..और ऐसे अजर अमर हो जाने से फायदा भी क्या है,की पुरे संसार को संभालने की जरूरत पड़ रही है तोह कितनी आकुलता होगी,जब एक परिवार को संभालने में इतनी टेंशन है,अब कहेंगे अनंत शक्ति है तोह फिर हतियार रखने की क्या जरूरत,क्या जरूरत साधे साती में छुपने की,क्या जरूरत ग्रहण में संकट आ जाने की,क्या जरूरत भूख,प्यास लगने की,क्या जरूओरत गुस्सा होने की...इन सब चीजों से जीव तोह महा दुखी रहता है....और ऐसे पद  का फायदा भी क्या है...क्या इसलिए मानून की इच्छाओं से युक्त है मतलब महा दुखी है,क्या इसलिए असंयमी है इसलिए,क्या इसलिए की वह यह नहीं जानते की आत्मा क्या है?.क्या इस्लिलिये मानु की उन मिथ्या मतों में भी कुछ अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रहमचर्य अदि को धर्म बताया ..लेकिन उनके यहाँ के देव देवियों में ब्रह्मा जैसे देवों को जिसको वह सृष्टि  का करता कहते हैं..उसे अपनी ही पुत्री पर आसक्त ,अप्सरा पर आसक्त मतलब ब्रहमचर्य तोह बहुत दूर की बात शिष्टाचार क्या बहुत नीच सोच वाला कहते और उसको इश्वर मान के पूजते हैं,या क्या इसलिए मानु की उनके यहाँ अहिंसा का नियम लेने को कहा है,बहुत अच्चा है अहिंसा को नियम लेने को कहा..लेकिन जिसकी पूजा कर रहे हैं वह महा क्रूर परिणामी है और राक्षाशों से दुष्टों से लड़ता है,तलवार हतियार अदि,हिंसा के भाव रखता है,दुष्टों के खून पीता है,और उन दुष्टों को भी अपनी ख्याति पूजा लाभ के लिए उसी ने संसार में भेजा था,उसी ने बनाया था और वह ही नष्ट करता है...यह तोह आम हिंसक से भी ज्यादा हिंसा हुई क्या मैं इसलिए मानु?..क्या इसलिए मानु की उनके यहाँ परिग्रह प्रमाण का नियम कहते हैं बहुत अच्छी बात है,लेकिन जिस की पूजा कर रहे हैं वह लोग,या परिग्रह का प्रमाण करने वाले लोग..उसकी पूजा करते हैं जो की परिग्रह से युक्त हैं...राजमहल अदि की संपत्ति से युक्त है...और इतना ही नहीं उसे इश्वर परम परमात्मा मानते हैं...क्या इसलिए मानु की उनके यहाँ राग को संसार का कारण कहा है ...ठीक है राग संसार का कारण है..लेकिन उनके यहाँ पूजा स्त्री से युक्त,वस्त्राभूषण से युक्त रागी-द्वेषी की पूजा करने के लिए कहते हैं,मतलब उन्हें इश्वर मानकर पूजते हैं,और ऐसा भी कहते हैं उसका ध्यान कर हम परमात्मा से मिल्लेंगे,पहली बात तोह रागी-द्वेषी परमात्मा नहीं संसारी है,पराधीन है,..और दूसरी बात क्या कोई विकल्प सहित इच्छा सहित शक्ति का ध्यान लगाकर निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त कर सकता है,इच्छा सहित के बताये हुए मार्ग पर चल कर इच्छा रहित कैसे हो जाए..क्योंकि उनके यहाँ इच्छाओं को दुःख का कारण कहा है....लेकिन उन मतों में पूजा भी इच्छा सहित की होती है,और इतना ही नहीं उसे इश्वर मान कर पूजा जा रहा है...ऐसे खोते मतों को मानकर जीव के कभी भी संसार भ्रमण का अंत नहीं हो सकता है,उल्टा संसार बढेगा ही.  

अपने खुद के विचार हैं.

हे भगवान आपने मोह का नाश किया है आपने अनंत सुख को प्राप्त किया है,आप अठारह दोषों से रहित हैं,आप में स्वेद नहीं है,आप में खेद नहीं,आप में मद नहीं है,आप में मृत्यु नहीं है,आप में मोह नहीं है,आप में उद्वेग नहीं है,आपको नींद नहीं आती हैं,आप में भय नहीं क्योंकि आपके शत्रु नहीं,शत्रु से भय्वीत नहीं,आप में विस्मय नहीं,आप में रोग नहीं आप में रोष नहीं है,आप में रति नहीं हैं,आप में राग नहीं है,आप में जरा नहीं है,आप में क्षुदा नहीं है,आप में चिंता नहीं है आप में तृषा नहीं है,आप ने शास्वत सुख को प्राप्त किया है,आप ने स्वाधीन सुख को प्राप्त किया है,आप ने आत्मोत्पन्न,बाधा रहित और अखंडित सुख को प्राप्त किया है,हे भगवान आपकी ज्ञान ज्योति के आगे सूर्य का प्रकाश भी फीका पड़ता है,हे भगवान आपके ज्ञान में तीनों लोकों के समस्त द्रव्य के अनंत गुणों और पर्यायों को एक साथ देख रहे हैं,हे भगवान आप भव्य जीवों को मोक्ष मार्ग बता रहे हैं और संसार के दुखों से छुड़ा कर मोक्ष का मार्ग बताते हैं,हे भगवान आप इन्द्र अदि देवों के द्वारा वन्दनीय है (मिथ्या कथित देवों की वंदना कौनसा देव करना चाहेगा,और क्यों करेगा,उससे कहीं ज्यादा विभूति है इन्द्र के पास),हे भगवान आप अनंत दर्शन,अनंत ज्ञान,अनंत सुख और अनंत बल से युक्त हैं....हे भगवान आप के अतीन्द्रिय ज्ञान में आवरण रहित ज्ञान में समस्त लोकालोक लोक की द्रव्य पर्याय युगपत प्रतिबिंबित हो रही हैं इसलिए आप ही परम ज्योति हैं,आप ने मोह का नाश किया जिसके कारण जीव संसार में भटक रहा है..आप ने उस मोह को ही नाश किया है,इसलिए आप विराग हैं,हे भगवान आप ने कर्म मल को नष्ट किया इसलिए आप विमल हैं,आप को अब कुछ करने के लिए नहीं बचा है,आप अपने स्वभाव में स्तिथ है,इसलिए कृति हैं,आप सर्वज्ञ हैं,आप अनाधि मध्यांत हैं आप सार्व हैं आप सभी जीवों को मोक्ष मार्ग बताते हैं,आप ने ज्ञान रुपी ऐश्वर्य को पाया इसलिए आप इश्वर हैं,आप ने महा मोह रुपी शत्रु का नाश किया इसलिए आप महा देव हैं,आप कर्मों के जाल से मुक्त हैं इसलिए रूद्र हैं..हे भगवान आप उत्तम समीचीन धर्म को बताने वाले हैं,आप ने मोक्ष मार्ग बताया है इसलिए आप पूज्य हैं...हे भगवान आपके द्वारा बताया हुआ रत्नत्रय मार्ग ही सच्चा है......हे भगवन आपके द्वारा प्रतिपादित धर्म समीचीन है श्रेष्ट है,सर्वोत्त्तम है,जो आपने कहा है वह प्रत्यक्ष ही दीखता है,.हे भगवन आपकी वाणी अटल सत्य है,आप १८ दोषों से रहित हैं..आप में राग-द्वेष नहीं है,आप सर्वज्ञ हैं आप के ज्ञान में समस्त द्रव्यों की अनंत गुण,अनंत पर्याएं एक साथ एक ही समय में दिखती है,आपने पूरे लोक को जाना है..इसलिए आपकी वाणी अटल सत्य है,आपकी वाणी अटल सत्य है क्योंकि उसमें प्रत्यक्ष और अनुमान में विरोध नहीं है,आपकी वाणी अटल सत्य है क्योंकि उसमें तत्त्व का उपदेश दिया है,सभी जीवों के लिए हितकारी है,और मिथ्या मार्गों का खंडन करने वाली है...और सच्चे शास्वत स्वाधीन आत्मोत्पन्न बाधा रहित अखंडित सुख को देने वाली है.

लिखने का आधार-योगामृत ग्रन्थ,रत्न-करंड श्रावकाचार..अदि (विचार बहुत से खुद के हैं)

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