दो कहानियां जो आचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महाराज के प्रवचन में सुनी थी।...जितना पार्ट याद है उतना लिखा है नीचे
1.जब आचार्य विराग सागर जी क्षुल्लक थे.तब उन्हें कोई ऐसी बीमारी हो गयी थी..तब लोगों ने कह दिया की आप दीक्षा छेद कर दो।..लेकिन आचार्य श्री (जब क्षुल्लक अवस्था में थे) तब उन्होंने इनकार कर दिया।....और यह जानते थे की इस संयम का मिलना बहुत ही दुर्लभ है ....उन्होंने भगवान् के आगे जाकर कहा की हे भगवन अगर ठीक हो गया तोह मुनि दीक्षा लू।..नहीं तोह समाधी मरण करूँगा.... आचार्य श्री ठीक हो गए।..जो की आज परम पूज्य गणचार्य विराग सागर जी महाराज के नाम से जाने जाते हैं।
2.जब आचार्य विमर्श सागर जी महाराज जब आचार्य विराग सागर जी महाराज के संघ में आये ही थे .....मतलब ब्रहमचारी अवस्था में।..तब नाग पंचमी के दिन के पास आते ही उन्हें सपने आने लगे।........उनके साथ गृहस्थ अवस्था में भी यही होता थ...तब घर के लोग क्या करते थे .......की नाग को दूध पिलाते थे।...लेकिन जब आचार्य श्री के संघ में थे ....तोह उन्होंने यह बात आचार्य श्री को बताई।....तब आचार्य श्री ने कहा की तुम भगवान् के आगे बोल आओ...की जितने भी देव हैं सब इन देवाधिदेव की शरण में आ जाएँ ..इनसे बढ़कर संसार में कोई शरण नहीं है।..............ब्रहमचारी जी ने ऐसा ही किया उस दिन के बाद से कभी भी सपने नहीं आये
इन दोनों से शिक्षा मिलती है की अगर हमारे धर्म के प्रति श्रद्धा हो..............तोह ऐसी होनी चाहिए।..............
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